रिपोर्ट:नन्दकिशोर शर्मा
बरेली । लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सांडों के जहां-तहां उत्पात ने प्रशासन को और ज्यादा मुश्किल में फंसा दिया है। राजनीति के गणित पर इस समस्या का असर न पड़े, इसके लिए आननफानन नंदी शालाएं बनाकर सांडों को उनमें रखे जाने की योजना तैयार हो गई है, लेकिन कई सवाल अब भी पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। नंदी शालाओं के बजट के अलावा सबसे बड़ी यह चिंता अफसरों पर हावी है कि नंदी शालाओं में भी अगर सांडों की जंग शुरू हो गई तो कैसे निपटा जाएगा।
देहात के इलाकों में सांड अब तक तमाम लोगों की जान ले चुके हैं। अब शहर में भी उनका उत्पात शुरू हो गया है। पिछले सप्ताह संजयनगर में गुस्साए सांड ने एक बुजुर्ग को पटक-पटककर मारने के साथ 12 लोगों को घायल भी कर दिया था। छुट्टा गोवंशीय पशुओं के फसलों को चर जाने की वजह से किसानों में हाहाकार मचा ही हुआ है।
अब तक प्रशासन ऐसी घटनाओं को नजरंदाज कर रहा था
लेकिन अब चुनाव नजदीक होने की वजह से बेहद जटिल हो चुकी इस समस्या के समाधान का उस पर इस कदर राजनीतिक दबाव है कि नीचे से ऊपर तक रोज-रोज आदेश-निर्देश जारी करने के साथ नई-नई योजनाएं बनाई जा रही हैं। यह अलग बात है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन कराना एक अलग समस्या बना हुआ है।
हाल ही में सांडों को जिले भर में नंदी शालाएं बनाकर उनमें संरक्षित करने की योजना बनाई गई है लेकिन अब यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि उनमें जब-तब भड़ककर हिंसक हो जाने वाले सांडों को आखिर कैसे काबू में रखा जाएगा। इस सवाल से प्रशासन के कदम एक बार फिर ठिठकने लगे हैं। अब नंदी शालाओं में सांडों के व्यवहार को नियंत्रित रखने के उपाय ढूंढे जाने लगे हैं।
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