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एसआरएमएस रिद्धिमा के मंच पर साकार हुआ महाभारत के युद्ध का 18वां दिन

बरेलीः असत्य के शोर में जब सत्य खोने लगे, मोह जब आसक्ति में बदल जाए, मर्यादाएं तार तार होकर टूटने लगें। नैतिकता जब सिर्फ दूसरों के उपदेश की बात हो जाए तब द्वापर के बाद शुरू होता है अंधायुग। इन्हीं भावनाओं को समेटे महाभारत युद्ध के 17वें दिन के बाद का मंचन हुआ आज एसआरएमएस रिद्धिमा में हुआ। इसमें सत्य की मर्यादा को पुनः स्थापित करने और अंधेयुग से निकलने का संदेश दिया गया। अंबुज कुकरेती के निर्देशन में धर्मवीर भारती के नाटक अंधायुग ने दर्शकों के सामने रिद्धिमा में नया मुकाम हासिल किया। कुरुक्षेत्र में 17वें दिन के युद्ध के बाद शाम को गिद्धों का झुंड शवों का भक्षण करने उतरता है उधर हस्तिनापुर में सूने राजमहल में सैनिक पहरा देने की औपचारिकता निभा रहे हैं। युद्ध का हाल जानने के लिए धृतराष्ट्र और गांधारी बेचैन हैं। उन्हें संजय का इंतजार है जो आकर युद्ध का हाल सुनाए और 16 दिन से लगातार हो रही बेटे दुर्योधन की पराजय के बदले उसकी विजय की बात कहे। लेकिन संजय के बजाय महल में विदुर प्रवेश करते हैं। वे फिर नीति वचन कहते हैं। कहते हैं कि राजन तोड़ी हुई मर्यादा और आपके पुत्र मोह से लगातार कौरवों का संहार हो रहा है। लेकिन गांधारी यह मानने को तैयार नहीं। वह इसके लिए श्रीकृष्ण को जिम्मेदार ठहराती हैं। उधर अपने निशस्त्र पिता द्रोण की हत्या के लिए अश्वत्थामा पांडव सेनापति धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर के झूठ को जिम्मेदार मानता है। वह किसी भी तरह किसी भी कीमत पर इसका बदला लेना चाहता है।
प्रतिहिंसा की आग में झुलस रहा एक तरफ अश्वत्थामा है तो दूसरी तरह पुत्रों की हत्या में दग्ध धृतराष्ट्र और गांधारी। सभी को पांडवों से बदला लेना है। इसके लिए किसी को भी नैतिकता या मर्यादा की कोई परवाह नहीं। अश्वत्थामा को उसके मामा कृपाचार्य मर्यादा को ध्यान में रख कर काम करने की सलाह कौरव सेनापति बनाते हैं। लेकिन प्रतिहिंसा में झुलस रहा अश्वत्थामा तीनों के साथ रात में पांडवों के खेमे पर आक्रमण कर देता है। अश्वत्थामा सो रहे पांडव सेनापति और अपने पिता द्रोण की हत्या करने वाले धृष्टद्युम्न को मार देता है। फिर पांडव समझ कर उनके पुत्रों की भी सोते समय हत्या कर देता है। अर्जुन को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाता है। अर्जुन भी उसका जवाब ब्रह्मास्त्र से देते हैं। ऐसे में व्यास पहुंचते हैं और दोनों को सावधान कर इसके दुष्परिणाम बता कर ब्रह्मास्त्र वापस लेने का आदेश देते हैं। अर्जुन ब्रह्मास्त्र वापस ले लेता है लेकिन प्रतिहिंसा में जल रहा अश्वत्थामा ऐसा न कर पांडवों के वंश को मिटाने के लिए ब्रह्मास्त्र की दिशा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ देता है। भगवान श्रीकृष्ण गर्भ की रक्षा करते हैं और अश्वत्थामा को भ्रूण हत्या का दोषी बता उसके सिर से मणि निकाल कर उसे युगों युगों तक धरती पर भटकने का श्राप देते हैं।
युद्ध के मैदान पर गांधारी को बेटे दुर्योधन से मिलने पहुंचती है। वहां उसका शव पाकर वह चित्कार उठती है। मर्यादा तोड़ कर दुर्योधन की कमर से नीचे गदा के प्रहार करने पर वह भीम को तो दोषी मानती ही है। उससे बड़ा जिम्मेदार वह श्रीकृष्ण को ठहराती है। गांधारी श्रीकृष्ण को भी श्राप देती है। वह कहती है कि जिस तरह उसका वंश आपस में लड़ कर खत्म हुआ है। यदुकुल भी श्रीकृष्ण के सामने ही समाप्त होगा। श्रीकृष्ण गांधारी के श्राप को स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन बाद में गांधारी को श्राप का भान होने पर फिर पश्चाताप होता है। वह श्राप को पलटने और न स्वीकार करने के लिए श्रीकृष्ण से अनुरोध करती है लेकिन श्रीकृष्ण कहते हैं। जब जब मनुष्य सत्य की मर्यादा तोड़ेगा, लोभ में अंधा होकर प्रतिहिंसा में डूबेगा उसके साथ वैसा ही होना है। जो गांधारी ने कहा है। वे गांधारी को आश्वासन देते हैं कि आने वाला युग इसी तरह के मनुष्यों का होगा। हां इसे बदलना भी उनके हाथ में होगा। वह इस अंधेयुग को सत्य और धर्म अनुसार आचरण से बदलने की शक्ति रखेंगे।
नाटक में अश्वत्थामा की भूमिका अजय चौहान, धृतराष्ट्र की भूमिका आशीष कुमार, गांधारी की भूमिका कृति, संजय की भूमिका पंकज कुकरेती, विदर की भूमिका मोहसिन खान, कृपाचार्य की भूमिका गौरव धीरज और कृतवर्मा की भूमिका जितेंद्र ने निभाई। भगवान शंकर की भूमिका में भरतनाट्यम गुरु अंबाली प्रहराज ने निभाकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देवमूर्ति जी, आशा मूर्ति जी, आदित्य मूर्ति जी, ऋचा मूर्ति जी, इंजीनियर सुभाष मेहरा, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.अनुज कुमार, डा.राघवेंद्र शर्मा, डा.दीपशिखा शर्मा सहित शहर के संभ्रांत लोग मौजूद रहे।

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