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नेपाल : प्रधानमंत्री के पी ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने की संसद भंग, क्या रही विवाद की वजह।

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नेपाल : नेपाल के प्रधानमंत्री के पी ओली की सिफारिश पर नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने नेपाल की संसद को भंग कर दिया। प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फ़ैसले के बाद उन्होने प्रतिनिधि सभा के नए जनादेश के लिए अगले साल अप्रैल और मई में चुनावों की घोषणा कर दी है. राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता बदरी अधिकारी ने बताया कि अगले साल अप्रैल में नए चुनाव होंगे. नेपाल मे राजनीतिक विवाद की वजह से काफी समय से राजनीतिक गतिरोध बना हुआ था। ताजा घटनाक्रम में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कैबिनेट ने सत्तारूढ़ पार्टी में मतभेद उभरने के बाद संसद को भंग करने की सिफ़ारिश कर दी. ओली सरकार के वरिष्ठ मंत्री वर्षमान पुन ने कहा कि रविवार सुबह प्रधानमंत्री ने अपने निवास स्थल पर कैबिनेट की एक आपातकालीन बैठक बुलाई थी.

क्या रही राजनीतिक विवाद की वजह।

ये बात तो स्पष्ट है कि नेपाल में सत्तारूढ़ सीपीएन (माओवादी) में चल रहे आंतरिक विवादों के बीच प्रधानमंत्री ओली ने संसद को भंग करने का प्रस्ताव दिया था. पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनाल जैसे वरिष्ठ नेता ओली पर पार्टी और सरकार को एकतरफा तरीके से चलाने का आरोप लगाते रहे थे.

तीन साल पहले केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में तत्कालीन सीपीएन-यूएमएल और प्रचंड के नेतृत्व वाले सीपीएन (माओवादी सेंटर) ने चुनावी गठबंधन बनाया था। इस गठबंधन को चुनावों में दो-तिहाई बहुमत मिला था. सरकार बनने के कुछ समय बाद ही दोनों दलों का विलय हो गया था. प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फ़ैसले के एक दिन पहले प्रधानमंत्री ओली पार्टी में मतभेदों के बीच शनिवार को प्रचंड के घर गए थे. पार्टी, प्रधानमंत्री पर उस अध्यादेश को वापस लेने का दबाव डाल रही थी जिसमें उन्हें प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता की सहमति के बिना विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं के सदस्यों और अध्यक्ष पदों पर नियुक्ति का अधिकार दिया गया था.

हालांकि सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं ने ये दावा किया था कि प्रधानमंत्री ओली इस विवादास्पद अध्यादेश को वापस लेने के लिए सहमत हो गए हैं, लेकिन तभी ओली कैबिनेट ने प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफारिश कर दी.

फैसले पर क्या रही प्रचंड की प्रतिक्रिया

भारी आंतरिक कलह के बीच प्रधानमंत्री ओली के राष्ट्रपति को संसद भंग करने की सिफारिश करने के बाद पार्टी के सह अध्यक्ष प्रचंड ने कहा, “रविवार को पार्टी की स्थाई समिति की बैठक में कैबिनेट की सिफारिश पर चर्चा की जाएगी.” उन्होने आगे कहा कि “इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ एकजुट होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. यदि सरकार इस सिफारिश को तुरंत वापस नहीं लेती है, तो पार्टी किसी भी हद तक (प्रधानमंत्री) के खिलाफ जा सकती है.”

“प्रधानमंत्री का फैसला सीधे संविधान की भावना के खिलाफ है और यह लोकतंत्र का मखौल है. ऐसी सिफारिश लोकतांत्रिक प्रणाली के विपरीत है. यह निरंकुशता का स्पष्ट संकेत है. आज पार्टी की स्थाई समिति की बैठक में इस पर बात की जाएगी.” लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी की आपातकालीन बैठक में इस मुद्दे पर इससे पहले कि कोई चर्चा होती, राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने संसद भंग करने का फ़ैसला कर लिया.

नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर पुष्प अधिकारी ने कहा “इसकी पृष्ठभूमि इसी साल के अप्रैल महीने में उस वक्त शुरू हुई जब प्रधानमंत्री ओली संवैधानिक परिषद अध्यादेश लाए. ये क़ानून उन्हें संवैधानिक समितियों की नियुक्ति करने का अधिकार देता था. इस अध्यादेश के ख़िलाफ़ सभी पार्टियां ख़ासकर ओली के अपने ही दल के सीनियर लीडर और पार्टी की पोलित ब्यूरो खड़ी हो गई. ” वो कहते हैं, “इस विरोध के बाद ओली को जबरन ये अध्यादेश वापस लेना पड़ा था. तब से ही इस मुद्दे को लेकर पार्टी में खींचतान जारी थी. ओली चाह रहे थे कि उनकी इच्छा से ये नियुक्तियां हों जबकि दूसरे लोग इसके ख़िलाफ़ थे. इन हालात में ओली अप्रैल से ही राजनीतिक रूप से हाशिये पर जाते हुए दिख रहे थे.”

जिस अध्यादेश को लेकर राजनीतिक विवाद पैदा हुआ है, उसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों और उनके अधिकारों के बीच संतुलन साधने वाला माना जाता है. लेकिन प्रोफ़ेसर अधिकारी कहते हैं, “राजनीति में चेक एंड बैलेंस की बात होती है लेकिन ये तब मुमकिन होता है जब सत्ता का बराबरी से बंटवारा हुआ हो. यहां पर ओली सरकार के पास दो-तिहाई बहुमत था. ऐसी बहुमत वाली सरकार के कामकाज में कोई बाधा डाले, उसका मुखिया तो ये स्वीकार नहीं करेगा.”
वो कहते हैं, “ओली जिस तरह की चीज़ों को आगे ले जाना चाहते थे, दूसरे लोग इसमें अड़चन पैदा कर रहे थे. ओली को दूसरा रास्ता दिखा नहीं और उन्होंने संसद भंग करने की सिफारिश कर दी.”

(सौ0 बी बी सी)

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